एक समाजशास्त्री संत की जीवन यात्रा
इस संत का जन्म 1939 में रामानुजगंज शहर, छत्तीसगढ़ राज्य में हुआ था । इन्होंने सीधे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में तो भाग नहीं लिया लेकिन आंदोलन के उत्तरार्ध में ही ये महज 8 वर्ष के थे और स्वतन्त्रता के बारे मे लोगो से जाना सुना इनके मन में कौतूहल पैदा करता था । उस समय आजादी की चर्चा खूब हुआ करती थी और उस समय आज़ादी माने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोष, सरदार भगत सिंह आदि का नाम बहुत आदर से लिया जाता था । और किसी भी सरकारी आयोजन या सामाजिक आयोजन मे इन लोगो का खूब नारा लगता था ओर देश के नौजवानो के लिए ये प्रेरणा स्त्रोत थे । उन्ही नौजवानो से प्रभावित होकर के बजरंग मुनि जी आगे चलकर दुनिया के सबसे बड़े विचारक व समाजशास्त्रियों मे से एक बने । बजरंग मुनि पर महात्मा गांधी जी का अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि बजरंग मुनि बचपन से ही सत्य व अहिंसा के रास्ते को चुना इसलिए उन्होने सुभाष चन्द्र बोष व भगत सिंह के रास्ते को जो बम गोला बारूद पिस्टल का था उसको पसंद नहीं करते थे लेकिन इसका मतलब यह नहीं की इन महापुरषो के प्रति उनके मन में आदर न था । उनकी राष्ट्र भक्ति उनकी नियत पर कोई संदेह नहीं था बल्कि उनके रास्ते को वो गतल मानते थे।
17 वर्ष की उम्र में 1955 में समाज को समझने और समाज में विसंगतियों को लेकर मन में चिंता उत्पन्न हुई और उसके सुधार एवं बदलाव को लेकर समाज में सीधे हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया । बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल इमरजेंसी घोषित कर दिया । तब तक बजरंग मुनि जी में आर एस एस, आर्य समाज, राजनीतिक पार्टियों के चरित्र आदि को लेकर एक समझ बन चुकी थी । यह बचपन से लोकतांत्रिक थे इसीलिए इंदिरा गांधी का आपातकाल लगाना इन को बुरा लगा और विरोध स्वरूप जेल जाना पड़ा, और 18 माह तक जेल में कैद रहे । आपातकाल के समय में जेल से आजाद होने और उसी समय देश में चुनाव की घोषणा होना इनके जीवन में बदलाव का कारण बना, और इनकी जन्म भूमि रामानुजगंज अविभाजित मध्यप्रदेश सहित केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनना और उस सरकार में इनका हस्तकक्षेप से मध्य प्रदेश सरगुजा संभाग के 8 विधानसभा क्षेत्रों में सभी विधानसभा व लोक सभा में तत्कालीन जनता पार्टी का विधायक चुना जाना और केंद्र में एक मंत्री सहित प्रदेश में 4 मंत्री बनना इनके कद में इजाफा होना और पार्टी में इनका कद बढना सब एक साथ हुआ और उस समय सत्तारूढ़ दल के सरगुजा जिले के जिला अध्यक्ष थे उससे पहला जनता पार्टी बनने से पहले जनसंघ के भी जिला अध्यक्ष थे यह उनका राजनीतिक जीवन यात्रा थी ।
उसके बाद यह सब करते हुए बजरंग मुनि जी व्यापार एवं कृषि आदि कार्य बड़ी तन्मयता से करते थे । बजरंग मुनि जी जो भी काम करते थे पूरे मनोयोग से करते थे, यही वजह थी कि उन्होंने अपने हाथ से हल भी चलाया, गन्ने की बुवाई, पेराई, गुण बनाना आदि सब काम करते हुए समाजशास्त्र पर अपना काम कभी नहीं छोड़ा । तत्पश्चात उन्होंने व्यापार व कृषि से मुक्त होकर 1985 से सार्वजनिक जीवन ही जिया और समाजशास्त्र को समझना उसकी जमीनी स्तर पर प्रयोग करना यह सब काम अपने जन्मभूमि रामानुजगंज को केंद्र बनाकर किया । उसी दौर में वे जनता के दबाव में नगर पंचायत रामानुजगंज के अध्यक्ष बने और उस अध्यक्ष काल में भी एक नया प्रयोग किया, और इनका नारा था कि गर्व से कहो हम दो नंबरी हैं । इन्होंने खुद को घोषित कर दिया और अपने कर्मचारियों को 10% घूस लेने का मौखिक आदेश पारित कराया । फिर गांधी का रास्ता अपनाकर सत्ता का विकेंद्रीकरण, गांव की सरकार ग्राम सभा सशक्तिकरण का अभियान चलाया और अपने इलाके के लगभग 20 किलोमीटर के क्षेत्र को चोरी-डकैती आदि से पूर्ण रूप से मुक्त घोषित कर दिया । इसी प्रयोग को उन्होने देश की राजधानी में प्रयोग करने हेतु दिल्ली प्रवास किया और उसका प्रयोग करना चाहा । परिणाम अपेक्षित ना आने के कारण पुनः रामानुजगंज आकर पुनः शोध व अनुसंधान के कार्यो मे संलगन हो गए । 1995 में एक आंदोलन चलाया गया जिसमें नेता बेईमान संत गुरु नाकाम इसका प्रभाव पड़ा कि मुनि जी को मारने का प्लान बनाया गया इस तरह मुनि जी पर यह आरोप लगाया गया कि आपका समन्वय नक्सलवादियों से है और आप सरकार के खिलाफ समानांतर सरकार चला रहे हैं जिसमें मुनि जी को यह साबित करना पड़ा और जबलपुर हाईकोर्ट से इनके पक्ष में फैसला आया । इस दौरान भारत के जाने माने बुद्धिजीवी, चिंतक आदि को बुलाकर लगभग 50 लाख रुपया खर्च कर भारत का भावी संविधान सहित अनेक पुस्तकों का लेखन किया । जिसमे मुनि मंथन, ज्ञान तत्व भारत का भावी संविधान आदि पर 15 वर्षों तक शोध किया उस दौरान देशभर के समाजशास्त्री बुद्धिजीवियों कानून विदो आदि के साथ चिंतन मंथन विचार विमर्श आदि किया और इस दौरान दर्जनों पुस्तकों का लेखन किया जिसे भारत का भावी संविधान, मुनि मंथन, ज्ञान तत्व, ज्ञानोत्सव, एक निवेदन के साथ-साथ 500 विषयों पर लेखन आदि किया । इतने से भी मन नहीं भरा तो एकांतवास के लिए हरिद्वार होते हुए दुनिया भर में योग के लिए प्रसिद्ध शहर ऋषिकेश में जाकर बजरंगलाल अग्रवाल से बजरंग मुनि बन गए । उसी दौरान ऋषिकेश में ज्ञानोत्सव नामक एक बड़ा कार्यक्रम 15 दिनों तक (29 अगस्त से 14 सितंबर 2019) तक कराया गया, जिसमे देश भर के बुद्धिजीवियों, चिंतको का जमावड़ा हुआ । और उस ज्ञान यज्ञ के माध्यम से देश भर के बुद्धिजीवियों के साथ मंथन किया गया । उस मंथन के अनुभव उन्होंने 29 फरवरी 2020 को दिल्ली में एक दिवसीय कार्यक्रम के दौरना अपने नए व पुराने सभी साथियो के मध्य में रखा, और आगे की रणनीति क्या होगी यह सवाल अपने साथियों के विचार विमर्श हेतु छोड़ा । इस कार्यकर्म के पश्चात पुनः ऋषिकेश वापस चले गए, किन्तु दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य कहिए उस दौरान करोना जैसी भयंकर बीमारी का फैलाव हुआ और मुनि जी को रायपुर लौटना पड़ा । रायपुर प्रवास के दौरान उन्होंने नयी तकनीक सोशल मीडिया/ज़ूम आदि से जुड़कर अपने देश भर में बिखरे हुए साथियो को जोड़कर इस कार्यकर्म को आगे बढ़ाया ओर इन्होंने ज़ूम पर ही लगभग 500 विषयो पर गंभीर बहस के साथ साथ दस्तावेजीकरण किया और इन विषयो को लिपिबद्ध करते हुए एक पुस्तक का लेखन किया, जिसका नाम एक "निवेदन रखा" जो इस समय लोगों के बीच बट रही है ।